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ज्येष्ठ माह अमावस्या कब है एवं इसका क्या महत्व है ?

ज्येष्ठ माह अमावस्या का विशेष महत्व होता है इस बार अमावस्या शनिवार को है एवं इस दिन वट सावित्री पूजा भी है इससे इसका महत्व और ज्यादा बढ़ गया है ।
जिनकी पत्रिका में शनि दोष या नीच शनि स्थित है इस दिन शनि की पूजा करने से वो शांत होंगे एवं इस दिन शनि ग्रह के लिए दान करने से 10 गुना ज्यादा लाभ मिलेगा ।

इस दिन सरसों तेल दान करने से सभी रोगों से मुक्ति मिलेगी
सावित्री पूजा करने से सभी प्रकार के सुखों की प्राप्त होती है ।

चैत्र नवरात्रि की महाअष्टमी, कन्या पूजन का जानें शुभ मुहूर्त, कथा, मंत्र और पूजा विधि-

चैत्र नवरात्रि की महाअष्टमी, कन्या पूजन का जानें शुभ मुहूर्त, कथा, मंत्र और पूजा विधि-

मां दुर्गा की आठवीं शक्ति हैं महागौरी~
महागौरी को एक सौम्य देवी माना गया है. महागौरी को मां दुर्गा की आठवीं शक्ति भी कहा गया है. महागौरी की चार भुजाएं हैं और ये वृषभ की सवारी करती हैं. इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है. ऊपर वाले बाएं हाथ में डमरू और नीचे के बाएं हाथ में वर-मुद्रा है.

पूजा विधि-
चैत्र नवरात्रि की अष्टमी तिथि महागौरी को समर्पित है. इस दिन मां महागौरी को नारियल का भोग लगाते हैं. महागौरी की पूजा अन्य देवियों की तरह की जाती है. लेकिन मां महागौरी की पूजा में कुछ विशेष बातों का ध्यान रखा जाता है. रात की रानी के पुष्प का प्रयोग करना चाहिए. क्योंकि ये फूल माता को अधिक पसंद है. माता को चौकी पर स्थापित करने से पहले गंगाजल से स्थान को पवित्र करें और चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका यानी 16 देवियां, सप्त घृत मातृका यानी सात सिंदूर की बिंदी लगाकर स्थापना करें. मां महागौरी की सप्तशती मंत्रों से पूजा करनी चाहिए ।

पूजा की सामग्री
– गंगा जल
– शुद्ध जल
– कच्चा दूध
– दही
– पंचामृत
– वस्त्र
– सौभाग्य सूत्र
– चंदन रोली,
– हल्दी, सिंदूर
– दुर्वा
– बिल्वपत्र
इसके साथ ही आभूषण,पान के पत्ते, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, धूप, कपूर, लौंग और अगरबत्ती आदि का प्रयोग पूजा में करना चाहिए.

अष्टमी तिथि शुभ मुहूर्त-
पंचांग के अनुसार 28 मार्च मंगलवार को रात्रि 19 बजकर 01 मिनट के बाद से अष्टमी की तिथि का आरंभ होगा 29 मार्च  रात्रि 21 बजकर 06 मिनट पर अष्टमी की तिथि का समापन होगा इसके बाद नवमी तिथि प्रारंभ होगी ।

  1. अतः जिन परिवारों में अष्टमी की कढ़ाई होती है वो सभी 29 मार्च सूर्योदय के पश्चात कभी भी कन्या पूजन कर सकते हैं।

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फाल्गुन शुक्ल पक्ष दुर्गाष्टमी व्रत एवं पूजा महत्व 2023

फाल्गुन शुक्ल पक्ष दुर्गाष्टमी व्रत एवं पूजा महत्व 2023

यह व्रत फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है इस बार यह व्रत 27 फरवरी 2023 को रखा जाएगा !

इस व्रत की शास्त्रों में विशेष मान्यता बताई है इस दिन मां दुर्गा की पूजा करने का विशेष फल मिलता है!

विशेष पूजा एवं उनके फायदे-

1. यदि फाल्गुन दुर्गाष्टमी के दिन सुहागिन महिलाएं माता दुर्गा को लाल चुनरी अर्पित करती हैं तो पति की आयु बढ़ती है तथा श्रृंगार सामग्री, मेहंदी, चूड़ी, बिंदी और काजल भेंट करें तो पति-पत्नी के संबंधों में मधुरता आती है।

2. दुर्गाष्टमी के दिन एक पान में गुलाब की 7 पंखुडि़यां रखकर मां दुर्गा को अर्पित करें, इससे स्थिर लक्ष्मी प्राप्ति के योग बनेंगे।

3. मान्यतानुसार इस दिन पूरी श्रद्धा के साथ दुर्गा जी की पूजा, उपासना या मंत्र जप करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होकर जीवन में आ रही हर समस्या का समाधान हो जाता है।
मंत्र- ॐ दुं दुर्गायै नमः ।

4. इस दिन सायंकाल पूजन के पश्चात मां देवी दुर्गा को भूरा कद्दू, लौकी या केला और ककड़ी चढ़ाने से माता प्रसन्न होती हैं।

5. दुर्गाष्टमी पर विधिपूर्वक दुर्गा पूजन एवं हवन करने से कष्ट, दुख नष्ट हो जाते हैं, शत्रुओं पर विजय तथा अच्छा स्वास्थ्य और धन-वैभव, संपन्नता मिलती है !

फाल्गुनी विनायक चतुर्थी व्रत- 23 फरवरी 2023

विनायक चतुर्थी व्रत 2023 विशेष महत्व-

विनायक चतुर्थी व्रत फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है इस बार 23 फरवरी 2023 को यह व्रत रखा जाएगा !

फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को यह व्रत किया जाता है  इस व्रत को करने से हमारी सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं कहते हैं जो फाल्गुनी मास की विनायक चतुर्थी का व्रत करता है उसके शीघ्र ही सभी कार्य संपन्न हो जाते हैं !

इस दिन से आप अपनी मनोकामना को पूर्ण करने के लिए व्रत रखना शुरू करें मान्यता है कि एक वर्ष के अंदर ही सभी मनोकामना सम्पन्न हो जाएंगी ।

जिनकी शादी नहीं हो रही हो वह शादी का प्रण लेकर व्रत रखें! जिनको संतान नहीं है वह संतान के निमित्त से व्रत रखें !        जिनके घर में सुख-शांति नहीं है वो भी इस व्रत को कर सकते हैं।

कैसे करें पूजा ?

चतुर्थी के दिन प्रातः स्नान इत्यादि से निवृत्त होकर भगवान गणपति जी की प्रतिमा को एक चौकी पर सजाएं!                 उसके पश्चात उनका ध्यान करते हुए उनको चावल और पुष्प चढ़ाएं फिर उनका सिंगार करें उसके बाद आरती उतारे एवं उन्हें भोग लगाएं ।

चतुर्थी के दिन भगवान गणेश को लड्डू का भोग लगाएं एवं वंश वृद्धि के लिए दूर्वा घास अर्पित करें ऐसा करने से सभी मनोरथ सिद्ध होंगे !

तत्पश्चात ॐ गण गण पतये नमः” इस मंत्र का ज्यादा से ज्यादा जप करें ऐसा करने से सभी मनोरथ शीघ्र ही सिद्ध होते हैं । At Companiesthatbuyhouses.co, we prioritize meeting the demands of our customers. Our team assists home buyers and sellers in closing their transactions. Marketing’s primary objective is to pique the interest of shoppers who are already in the market for products like yours. The pricing negotiation process will kick off with the details you provide. When selling your home, we will be here to help you every step of the process. Let us assist you in making a favorable beginning to your journey. Visit https://www.companiesthatbuyhouses.co/florida/home-buying-company-ocala-fl/.

फाल्गुनी अमावस्या महत्व

फाल्गुनी अमावस्या का महत्व-

फाल्गुनी अमावस्या सभी अमावस्या में विशेष महत्व रखती है इस दिन भगवान विष्णु साक्षात पितरों का स्वरूप लेकर पृथ्वी पर आते हैं !

कहते हैं इस दिन गंगा या किसी तीर्थ स्थान पर स्नान करने से हमारे पित्तरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है एवं इस दिन दान पुण्य करना किसी ब्राह्मण को भोजन कराना या गरीबों को दान करना गरीबों को भोजन कराने से हमारे पित्र देवता तृप्त होते हैं!

आज के दिन सबसे पहले अपने घर में अमावस्या का प्रसाद बनाएं उसके पश्चात उस प्रसाद को भगवान को भोग लगाएं एवं गाय इत्यादि को भी प्रसाद दें ब्राह्मण को भोजन कराएं एवं वस्त्र दान करें ऐसा करने से हमारे पितृ प्रसन्न होते हैं और अपना आशीर्वाद हमारे परिवार पर देते हैं ।

आमलकी एकादशी एवं रंगभरी एकादशी कब है एवं कैसे करें पूजा ?

आमलकी एकादशी एवं रंगभरी एकादशी कब है एवं कैसे करें पूजा ?

हिंदू धर्म के अनुसार हर माह में दो एकादशी व्रत होते हैं। फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आमलकी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। वैसे तो हिंदू धर्म के अनुसार सभी एकादशियों का काफी महत्व माना गया है, लेकिन इन सब में आमलकी एकादशी को सर्वोत्तम स्थान पर रखा गया है। आमलकी एकादशी के दिन श्री हरि विष्णु और आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है। मान्यता है कि आंवले का वृक्ष भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय होता है। आमलकी एकादशी को कुछ लोग आंवला एकादशी या आमली ग्यारस भी कहते हैं।
ये होली से कुछ दिन पहले पड़ती है, इसलिए इसे रंगभरी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
पंचांग के अनुसार इस बार आमलकी एकादशी का व्रत 3 मार्च 2023 को शुक्रवार के दिन रखा जाएगा !

आमली एकादशी एवं रंगभरी एकादशी पूजन-

रंगभरी एकादशी के दिन शिवलिंग पर लाल रंग का गुलाल और माता पार्वती को सोलह श्रृंगार की सामग्री अर्पित करें. एकादशी के दिन रात्रि जागरण करने से व्रत का प्रभाव अधिक बढ़ जाता है.
ऐसे में रात में विष्णु जी के समक्ष 9 बत्तियों का दीपक जलाएं तथा एक बड़ा दीया अलग से प्रज्वलित करें, जो रातभर जलता रहें. शिव और विष्णु जी के मंत्रों का जाप करें. मान्यता है इससे जीवन में धन-संपत्ति की समस्या का समाधान होता है. वैवाहिक जीवन सुखमय रहता है ।

षटतिला एकादशी की हार्दिक शुभकामनाएं।।

षटतिला एकादशी की हार्दिक शुभकामनाएं।।

एकादशी व्रत का महत्व-

हिन्दू शास्त्रों के अनुसार एकादशी में दो शब्द होते हैं एक (1) और दशा (10)। दस इंद्रियों और मन की क्रियाओं को सांसारिक वस्तुओं से ईश्वर में बदलना ही सच्ची एकादशी है। एकादशी का अर्थ है कि हमें अपनी 10 इंद्रियों और 1 मन को नियंत्रित करना चाहिए। मन में काम, क्रोध, लोभ आदि के कुविचार नहीं आने देने चाहिए। एकादशी एक तपस्या है जो केवल भगवान को महसूस करने और प्रसन्न करने के लिए की जानी चाहिए।
हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी तिथि भगवान विष्णु को बेहद प्रिय है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस व्रत की महिमा स्वयं श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताई थी। एकादशी व्रत के प्रभाव से जातक को मोक्ष मिलता है और सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं, दरिद्रता दूर होती है, अकाल मृत्यु का भय नहीं सताता, शत्रुओं का नाश होता है, धन, ऐश्वर्य, कीर्ति, पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता रहता है।

हिंदू पंचांग के अनुसार, माघ कृष्ण पक्ष एकादशी तिथि 17 जनवरी 2023, मंगलवार शाम 6 बजकर 5 मिनट पर प्रारंभ होगी, जो 18 जनवरी 2023, बुधवार शाम 4 बजकर 3 मिनट पर समाप्त होगी. ऐसे में 18 जनवरी 2023 को षटतिला एकादशी का व्रत रखा जाएगा ।

षटतिला एकादशी 2023 पूजा विधि-

षटतिला एकादशी पर सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद मंदिर में जाकर भगवान विष्णु की पूजा करें श्रीहरि को पुष्प, धूप आदि अर्पित करें भगवान विष्णु की आरती करें भगवान विष्णु को तिल से बनी वस्तुओं का भोग लगाएं इस दिन तिल का दान करें व्रत के दौरान भगवान विष्णु की आराधना करें ।

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